Judicial Separation और Divorce में क्या अंतर है?

आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे Judicial Separation और Divorce किसे कहते है और Difference Between Judicial Separation and Divorce in Hindi की Judicial Separation और Divorce में क्या अंतर है?

Judicial Separation और Divorce के बीच क्या अंतर है?

भारतीय समाज में विवाह को एक संस्कार माना जाता है। यह पति-पत्नी के बीच का एक अटूट संबंध होता है लेकिन कुछ कारणों से शादी के बीच दरार आ जाती है और रिश्ता टूटने के कगार पर आ जाता है। 1955 से पहले, असफल विवाह के मामले में किसी भी पक्ष को कोई राहत उपलब्ध नहीं थी वह क़ानूनी तौर पर एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते थे वह शादी को नहीं तोड़ सकते थे।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के पारित होने के बाद दोनों पक्षों को शादी के बाद कानूनी तौर पर एक दूसरे से अलग होने की अनुमति दी। अब, एक असफल विवाह के मामले में पति पत्नी एक दूसरे से अलग हो सकते है। भारत के कानून में शादी के बाद पति पत्नी दो चीजों के माद्यम से एक दूसरे से कानूनी रूप से अलग हो सकते है एक Judicial Separation और दूसरा तरीका Divorce का है।

अगर Judicial Separation और Divorce के बीच के मुख्य अंतर की बात करे तो यह है कि Judicial Separation के बाद यदि परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाती हैं तो पक्षकार साथ-साथ रह कर दाम्पत्य- जीवन अपना सकते हैं जबकि तलाक की डिक्री के पश्चात् पक्षकार यदि पुन: दाम्पत्य-जीवन अपनाना चाहते हैं तो उन्हें दोबरा से विवाह करना होगा।

Judicial Separation के अन्तर्गत विवाहित महिला पुरुष अन्तिम रूप से एक दूसरे से अलग नहीं होते हैं। किन्तु वे कानूनी रूप से एक दूसरे से अलग रह सकते हैं लेकिन तलाक के अन्तर्गत विवाह के पक्षकार हमेशा के लिए एक दूसरे से अलग हो जाते है।

तलाक हो जाने के बाद पति को पत्नी के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी नहीं ठहरायो जा सकता है जबकि Judicial Separation के बाद पति अपनी पत्नी के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

विवाह कानून अधिनियम, 1976 Judicial Separation और Divorce को सामान्य बनाता है। यह पति और पत्नी पर है कि वे एक दूसरे से अलग होने के दो तरीकों के बीच किसकाचयन करें। Judicial Separation और Divorce का कानूनी प्रभाव हालांकि अलग है। तलाक एक शादी के रिश्ते को पूरी तरह खतम कर देता है इसके विपरीत Judicial Separation दोनों पक्षों के बीच समझौते की गुंजाइश छोड़ देता है।

इसके आलावा भी Judicial Separation और Divorce में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते है जिनको हम Difference टेबल के माध्यम से नीचे समझेंगे लेकिन उससे पहले हम Judicial Separation और Divorce किसे कहते है इसको और अच्छे से समझ लेते है।

What is Judicial Separation in Hindi-न्यायिक पृथक्करण किसे कहते है?

न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) एक विशिष्ट अवधि के लिए वैवाहिक अधिकारों या वैवाहिक दायित्वों का निलंबन है। अगर पति पत्नी की बीच ज्यादा मतभेद है और वह डिवोर्स नहीं लेना चाहते तो जुडीशियल सेपरेशन शादी को एक और मौका देने का उपाय है। यह तलाक से बहुत अलग है। इसमें पति-पत्नी रहते हुए भी एक-दूसरे से अलग रहा जा सकता है।

भारत में विवाह को जन्म जन्मांतरों का संबंध माना जाता है ऐसे में विवाह को सफल  बनाने का हर संभव प्रयास किया जाए इसी विचार को ध्यान में रखते हुए वर्तमान हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 10 के अधीन जुडीशियल सेपरेशन का प्रावधान रखा गया है।

कई बार गुस्से में या किसी गलतफहमी चलते पति पत्नी एक दूसरे से अलग होने का विचार बनाने है। जुडीशियल सेपरेशन प्रावधान के तहत वैवाहिक जीवन पूरी तरह से निरस्त नहीं होता बल्कि कुछ समय के लिए वैवाहिक ज़िम्मेदारियां पर कानूनी रूप से एक तरह का विराम लग जाता है।

कौन दे सकता है जुडीशियल सेपरेशन की अर्ज़ी

पति पत्नी में से कोई भी पक्ष अधिनियम की धारा 10 के तहत जुडीशियल सेपरेशन के लिए याचिका दायर कर सकता है। कोर्ट से  डिक्री पारित हो जाने के बाद भी विवाह तो बना रहता है लेकिन वे एक-दूसरे के साथ सहवास करने के लिए बाध्य नहीं होते हैं क्योकि रेस्पॉन्सिबिलिटीज़ खत्म हो जाती हैं। ऐसे में उन्हें अलग-अलग रहने का अधिकार भी मिल जाता है।

क्या जुडीशियल सेपरेशन के बाद पति -पत्नी के बीच संबंध बन सकते हैं?

यहां यह बताना बहुत जरूरी हो जाता है कि अगर जुडीशियल सेपरेशन  के दौरान शारीरिक संबंध पत्नी की इच्छा के विरुद्ध बनाए गए हैं तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा।

जुडीशियल सेपरेशन की डिक्री मिलने के बाद अगर इस दौरान पति -पत्नी के बीच फिजिकल रिलेशन बनते हैं और रिश्ते बेहतरी की तरफ बढ़ते नज़र आते हैं तो आप ऐसी डिक्री को निरस्त करने के लिए न्यायालय के समक्ष आवेदन कर सकते है।

अगर कपल कोर्ट में यह बताए कि वह अपने रिश्ते को एक नया मौका देने को तैयार हैं और भविष्य में वह गलतियां नहीं दोहराएंगे जिससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई तो न्यायालय डिक्री को निरस्त कर देता है और विवाह पहले जैसी स्थिति में आ जाता है।

Grounds of judicial separation-जुडीशियल सेपरेशन का आधार

  • Adultery: यदि पति या पत्नी ने विवाह के बाद अपने पति या पत्नी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वैच्छिक संभोग किया हो।
  • Cruelty: यदि विवाह के बाद, पति या पत्नी में से एक दूसरे के साथ क्रूरता का व्यवहार करता है और आपस में काफी मतभेद हो।
  • Desertion: यदि दूसरे पक्ष ने याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले बिना किसी उचित आधार के 2 साल की लगातार अवधि के लिए पति या पत्नी को छोड़ दिया है।
  • Conversion: अगर पति या पत्नी में से कोई एक किसी दूसरे धर्म को अपना लिया हो।
  • Insanity: यदि दूसरा पक्ष विकृत दिमाग का है या लगातार इस तरह के मानसिक विकार से पीड़ित है और इस हद तक कि याचिकाकर्ता दूसरे पक्ष के साथ नहीं रह सकता है।
  • Leprosy: यदि दूसरा पक्ष कुष्ठ रोग जैसे लाइलाज रूप से पीड़ित रहा हो।
  • Venereal disease: यदि दूसरा पक्ष संचारी रूप में यौन रोग से पीड़ित रहा हो।

What is Divorce in Hindi-तलाक किसे कहते है?

तलाक एक विवाह या वैवाहिक मिलन को कानूनी तौर पर समाप्त करने की प्रक्रिया है। तलाक में आमतौर पर विवाह के कानूनी कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को रद्द करना शामिल है।

अगर पति और पत्नी के बीच किसी कआरणवश कुछ ऐसी परिस्थितियां बन जाती है कि पति और पत्नी अपने लिए अलग-अलग रास्ता चुनना सही समझते हैं तो इस स्थित में वह एक दूसरे से तलाक ले सकते हैं।

पति और पत्नी के बीच कानूनी रूप से इस रिश्ते को समाप्त करना ही तलाक कहलाता है। भारतीय हिन्दू लॉ अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत तलाक दिया जाता है और धारा 13 के अन्तर्गत तलाक की प्रक्रिया पूरी करायी जाती है।

तलाक विवाह और सभी पारस्परिक अधिकारों को समाप्त कर देता है, और दायित्वों को समाप्त कर दिया जाता है। तलाक की प्रक्रिया पूरी होने के बाद पति और पत्नी किसी दूसरे से शादी करने के लिए स्वतंत्र हैं।

Grounds for divorce-तलाक लेने का आधार

1. एक दूसरे का ध्यान नहीं रखना शादी होने के कुछ दिन बाद तक पति-पत्नी एक दूसरे का अच्छी तरह से ध्यान रखते हैं। लेकिन समय बीतने के बाद एक दूसरे को इग्नोर करने लगते हैं। इससे रिश्ते में कड़वाहट आने लगती है। और तलाक भी हो जाता है।

2. लड़ाई झगड़े होना पति-पत्नी के बीच छोटे-मोटे लड़ाई झगड़े हमेशा होते रहते हैं। लेकिन कई बार बात ज्यादा बढ़ने से तलाक की नौबत आ जाती है।

3. बेवफाई आज के समय में पति-पत्नी के बीच तलाक होने की सबसे बड़ी वजह किसी दूसरे के साथ अवैध संबध होती है।

Difference Between Judicial Separation and Divorce in Hindi

अभी तक ऊपर हमने जाना की Judicial Separation और Divorce किसे कहते है अगर आपने ऊपर दी गयी सारी चीजे ध्यान से पढ़ी है तो आपको Judicial Separation और Divorce के बीच क्या अंतर है इसके बारे में अच्छे से पता चल गया होगा।

अगर आपको अब भी Judicial Separation और Divorce क्या होता है और इसमें क्या अंतर है इसको समझने में में कोई कन्फ़्युशन है तो अब हम आपको इनके बीच के कुछ महत्वपूर्ण अंतर नीचे बताने जा रहे है।

  • विवाह को बचाए रखने के लिए हिन्दू मैरिज एक्ट धारा 10 के अधीन  जुडीशियल सेपरेशन की व्यवस्था की गई है वहीं  हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत तलाक का प्रावधान है।
  • जुडीशियल सेपरेशन में एक निश्चित अवधि के लिए वैवाहिक रेस्पॉन्सिबिलिटीज़  से मुक्ति कर दिया जाता है जबकि तलाक विवाह को स्थायी रूप से भंग कर देता है।
  • जुडीशियल सेपरेशन भी तलाक का आधार हो सकता है।
  • जुडीशियल सेपरेशन के तहत पक्षकार अपनी शादी को ठीक करने के बारे में सोच सकते हैं और इसे सुलझा सकते हैं लेकिन तलाक के तहत, ऐसा नहीं किया जा सकता।
  • जुडीशियल सेपरेशन के दौरान दोबारा शादी नहीं की जा सकती है जबकि तलाक के बाद दोनों ही पार्टी पुन: शादी के लिए स्वतंत्र हैं।

Conclusion

आज के इस पोस्ट में हमने जाना की Judicial Separation और Divorce किसे कहते है और Difference Between Judicial Separation and Divorce in Hindi की Judicial Separation और Divorce में क्या अंतर है।

Ravi Giri
Ravi Girihttp://hinditechacademy.com/
नमस्कार दोस्तों, मै रवि गिरी Hindi Tech Academy का संस्थापक हूँ, मुझे पढ़ने और लिखने का काफी शौख है और इसीलिए मैंने इस ब्लॉग को बनाया है ताकि हर रोज एक नयी चीज़ के बारे में अपने ब्लॉग पर लिख कर आपके समक्ष रख सकू।

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